हृदयाघात (हार्टअटैक) से बचने के,बस
*10* अमृतम उपाय ।
आयुर्वेद का महामंत्र है-
असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्युर्मा ‘अमृतम’गमय ।।
अर्थात -हम अन्धकार से प्रकाश
की और चलें । फिर कहा गया-
“सर्वे भवन्तु सुखिनः”
अर्थात-सब सुखी रहें, स्वस्थ्य रहें,मस्त-तंदरुस्त रहें । इस हेतु अमृतम आयुर्वेद में अनेक योगों का वर्णन है ।
जैसे जून की भीषण गर्मी में भी अर्जुन को हृदय हेतु हितकारी बताया है ।
1- आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ “
भावप्रकाश निघंटु”
के अनुसार “अर्जुनछाल” में एंटीऑक्सीडेंट होता हैं जो कोलेस्ट्रॉल कम कर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में भी सहायक हैं ।

“अर्जुन छाल” हृदय रोग नाशक आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ जड़ीबूटी है ।
“सारंगधर सहिंता” में अर्जुन के बारे में पढ़ने को
मिला कि- “अर्जुना:नदेह विकारश्च,
हृदया रोग नाश्यन्ति
अर्थात अर्जुन देह मे विकार टिकने नहीँ देता तथा हृदय रोग नाशक है ।
अर्जुन वृक्ष पुराना होने पर इसके तने में कई
ऐसी आकृतियां जैसे ॐ, नाग, आदि प्रकट हो जाती हैं । इसे आयुर्वेद की आत्मा कहा गया है ।
2- द्राक्षा (मुनक्का) हरड़ व आँवले का मुरब्बा आदि फाइबर युक्त प्राकृतिक फलों का अद्भुत गुण यह है कि औषधि के साथ-साथ यह योगवाही होते हैं । ये फल अर्जुन,मुलेठी, गिलोय, चिरायता के गुणों में बेशुमार वृद्धिकर यकृत, गुर्दा, आंतों, फेफड़ों, व हृदय रोगों का जड़मूल से नाश कर देते है । इन सबको आयुर्वेद की एक प्राचीन अवलेह विधि के अनुसार
“अमृतम गोल्ड माल्ट” में मिलाया गया है, ताकि सुबह उठते ही समय पर पेट पूरी तरह साफ हो । यह सब
ओषधियों का मिश्रण उदर के विकारों को मिटाता है ।
आयुर्वेद की प्राचीन औऱ आधुनिक पद्धति के समावेश से अमृतम गोल्ड माल्ट ऐसे कई अनेक रोगों को दूर करता है, जिसका हमें पता ही नहीं होता । अमृतम आयुर्वेद में इन्हें अज्ञात रोगों की श्रेणी में माना गया है ।
3- रोगोँ का रास्ता उदर सहारे बनता है, वे रोग हैं- अम्लपित्त (एसिडिटी) लगातार कब्ज का बना रहना या पेट कब्ज के कब्जे में लंबे समय तक रहना । पेट समय पर साफ नहीं होना, बेचेनी, भारीपन, काम में मन न लगना, भूख न लग्न अथवा खाने की इच्छा न होना (अनिच्छा) छाती, हाथ-पैर,तलवों,पेशाब व आंखों की जलन, सिर का भारीपन,आलस्य, तथा गैस या वायु रोग आदि खतरनाक रोग उदर के अंदर पनपते रहते हैं । जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होती है ।
4- तन-मन के विकारों से “काम”का काम तमाम हो जाता है । सेक्स के प्रति अरुचि हो जाती है, (तो पीडित
पुरुष बी.फेराल मालट व केपसूल
2महीने तक लेवें) । इसके अलावा अनेक
औऱ भी विकार
“तन का पतन” कर,शरीर को संक्रमण (वायरस) आदि अपने कब्जे में लेकर ज्वर, चिकनगुनिया, डेंगू फीवर, स्वाइन फ्लू, निपाह जैसे वायरस धीरे-धीरे शरीर व खोपड़ी (मस्तिष्क) को खोखला कर देते हैं । ये सब भी अनेक
असाध्य रोगों केन्सर व ह्रदयघात का मुख्य कारण होता है ।
सेव मुरब्बा, गुलकन्द पित्त नाशक है । पित्त ही तन में असंख्य विकारों का जन्मदाता है । पित्त की वृद्धि से ही सभी तरह के प्रमेह औऱ मधुमेह रोग सताते हैं । केश पतन, बालों का झड़ना, दृष्टिदोष,कम उम्र
में मोतियाविन्द जैसे रोग पित्तवृद्धि से प्रगट होते हैं । केश के क्लेश को मिटाने हेतु “
कुन्तल केअर हेयर हर्बल बास्केट” का उपयोग अतिशीघ्र ही बालों को झड़ना रोकता है ।
6- आयुर्वेदिक ग्रंथ “भेषजयरत्नावली” तथा “द्रव्यगुण विज्ञान” में लिखा है कि पित्त से उत्पन्न रोग के रहस्यों को समझना मुशिकल होता है । ये एक बार तन में प्रवेश कर गए, तो अंत तक पीछा नहीं छोड़ते । तब, तन एक दिन ताश के पत्तों की तरह ढहने
पर मजबूर हो जाता है ।
जैसे-मधुमेह, रक्तचाप, कर्कट रोग, हृदय की धमनियों का
क्रियाहीन होना आदि ।
अमृतम गोल्ड माल्ट पित्त के कारण उत्पन्न रोगों तथा इस तरह की सभी बीमारियों को दूर करने में पूर्णतः सहायक है । इसके सेवन से पित्त का पूरी तरह नाश हो जाता है । शरीर में गर्मी का एहसास एवं कभी कोई रोग हो ही नहीं पाते । परम मानसिक शांति दायक है ।पित्त के लिए यह रक्षा कवच है ।
7– गिलोय,चिरायता, अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर,कफनाशक के रूप में दुनिया में प्रसिद्ध हैं । जीवनीय शक्ति व कामवर्द्धक भी हैं । शतावर व कौंच बीज बाजीकरण में असरकारी
ओषधि का भी मिश्रण है, जो गर्वीली स्त्रियों
के मान-मर्दन को भंग कर उनकी काम-पिपासा शांत करने में सहायक हैं ।
8–
अमृतम गोल्ड माल्ट में “पिप्पली” मिलाकर इसे औऱ प्रभावशाली बना दिया है । शिथिल शरीर को
पूर्णतः क्रियाशील बनाकर रक्त के संचार में सहायक है
पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियन्त्रित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है। पिप्पली और छोटी हरड़ को समभाग मिलाकर पाउडर बना लें, रोज 5 माह तक नियमित एक-एक चम्मच सुबह- शाम गुनगुने दूध या जल से लेने पर पेट दर्द,मरोड़,व दुर्गन्धयुक्त अतिसार ठीक होता है |
9-तन की तलाशी-
शरीर को हजारों नसें, रक्त धमनियां, मांसपेशियां, स्नायु ओर हड्डियों के साथ अन्य कई अवयव आपस में मिलाकर इसे चलाती हैं ।
हमारे तन का बाहरी व अंदरूनी हिस्सा
सुरक्षित बना रहे इन सबका विशेष ध्यान रखते हुए ही
“अमृतम गोल्ड माल्ट” का निर्माण आयुर्वेद की पुरानी पद्धति अवलेह के अनुसार किया है ।
कुछ ऐसे तत्व भी पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं से बढ़ने से रोकते हैं ।
10-विटामिन्स, प्रोटीन, मिनरल्स, खनिज पदार्थो तथा आवश्यक अवयवों की पूर्ति करता है । घटती रोगप्रतिरोधक क्षमता
के कारण तन में उत्पन्न विकारों पनपने
ही नहीं देता ।
अद्भुत ओषधि, तो है ही साथ ही सप्लीमेंट के रुप में इसे पूरा परिवार आजीवन लेवे, तो कभी कोई रोग नहीं होने देता । बचपन से इसे खिलाया जावे, तो
पूरा जीवन रोग रहित रह सकता है ।इसके अलावा आयुर्वेद में अभ्यंग का बहुत महत्व बताया है ।
100 वर्ष तक स्वस्थ रहने का सूत्र-
जब शरीर में रक्त का नियमित संचार नहीं होगा, तो कभी न कभी पकड़ ढीली हो
जाती है । मालिश की ऊर्जा या गर्माहट
से पूरे शरीर में रक्त पतला होकर
सारे शरीर में चालयमान हो जाता है ।
बादाम तेल, चंदनादि तेल तथा केशर व गुलाब के इत्र से निर्मित अमृतम आयुर्वेद का एक अद्भुत खुशबूदार तेल
“
काया की तेल” की लगातार मालिश अनेक असाध्य रोगों से रक्षा करता है ।
क्यों करें शरीर में अभ्यंग (मालिश)
प्रतिदिन
“काया की” तेल की मालिश से शरीर की सभी नर्वस नाड़ियां,धमनियां क्रियाशील हो जाती हैं । तन फुर्तीला, चुस्त-दुरुस्त हो जाता है । जब रक्त संचार सुचारू रूप से होने लगता है, तब सारे ज्ञात-
अज्ञात रोग तन से पलायन कर जाते हैं । विशेषकर
वात-विकार, हाहाकार कर निकल जाते हैं ।
“भैषज्य सार संग्रह” के “अभ्यंग अध्याय” में
बताया है कि-
अभ्यंग तेलं, वंगा: शरीरा:
मालिश (अभ्यंग) से शरीर फौलाद हो जाता है । अनेकों लाभ होते हैं ।
प्रतिदिन अथवा बुधवार, शुक्रवार व शनिवार
को पूरे शरीर की (सिर से लेकर तलवों तक) हर हाल में अभ्यंग (मालिश)करना चाहिए । इससे
पूरा नाड़ीतंत्र सक्रिय हो जाता है । रक्त संचार के अवरोध से ही हृदय रोग, शरीर व जोड़ों,घुटनों में दर्द होता है ।
“मंत्रमहोदधि के अनुसार”
अभ्यंग शरीरं सर्वरोगानश्च
नेत्रं सुखम, शरीरं सुखम
सर्वमं सुखम, सर्वत्रश्च….आदि
इसका अर्थ से ज्ञात होता कि
मन व तन मस्त मलङ्ग हो सकता है ।
नियमित मालिश से कभी कोई रोग होते ही नहीं हैं । शरीर को सशक्त व शक्तिशाली बनाने हेतु
नित्य “अमृतम काया की तेल” का अभ्यंग करना चाहिये । अभ्यंग से शरीर की कमजोर सूक्ष्म
नाड़ियां भंग (नष्ट) नहीं हो पाती।
अभ्यंग से वसा बुरा एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है .
काया की तेल में मिलाया गया जैतून का तेल एंटीऑक्सीडेंट होता हैं , जो तन के सूक्ष्म छिद्रों में समाहित होकर तन को अथाह ताकत एवं हड्डियों को मजबूती देकर अन्य कई बीमारियों को पैदा या प्रगट होने से पहले ही खत्म कर देता है ।
अनेक मुरब्बों, गुलकन्द व जड़ीबूटियों से बनी एक हर्बल चटनी (अवलेह) है, जो बचपन से पचपन तक की आयु वालों के तन को स्वस्थ्य -मस्त-तंदरुस्त बनाता है ।
देखा गया है की 4o के बाद, शरीर को चलाने हेतु विशेष खाद (हर्बल्स दवाओं) की जरूरत पड़ती है । जिस पर अधिकांश लोग ध्यान नहीं देते । 40 साल की उम्र से चाल-ढाल व खाल भी ढीली पड़ने लगती है ।
“
योगरत्नाकर नामक ग्रंथ के एक अध्याय में उल्लेख है कि 40 के पार, अमृतम आयुर्वेद ही एक मात्र आधार है । 40 ऊपर के व्यक्ति के लिए अच्छी निंद्रा व
अमृतम गोल्ड माल्ट
का नित्य सेवन बहुत ज़रूरी है । मालिश भी मन को मस्त बनाये रखती है ।
यह शरीर से निकलने वाले तनाव हार्मोन, जो धमनियों को ब्लॉक कर देते हैं और जलन पैदा करते हैं । इन सबका रक्षक है ।
फाइबर युक्त आहार लें :-
हमेशा ऐसा आहार ले,
जो उदर में आ-कर हार जाए । ऐसा न खाया जाए कि- तन में भार हो जाए । आयुर्वेद नियमानुसार ज्यादा गरिष्ठ भोजन तन-मन को जार-जार कर विकारों से भर देता है ।
आधुनिक रिसर्च के आधार पर ये खोजा गया है कि आयुर्वेद के
आँवला, हरीतकी (हरड़), सेव फलों से बनने वाले मुरब्बों एवं गुलकन्द में अत्यधिक फाइबर पाया जाता है । आप जितना अधिक फाइबर खायेंगे व अमृतम आयुर्वेद को अपनाएंगे-आपके दिल का दौरा पड़ने के मौके उतने ही कम होंगे .
केवल सुबह नाश्ते के समय एवं दुपहर अधिक से अधिक फल, सूप, जूस,और सलाद का प्रयोग करें .
रात्रि में दही,जूस, फल, सलाद का कतई सेवन न करें ।
ब्रेक फास्ट में फलों का रस लें :
संतरे का रस में फोलिक एसिड होता है जो दिल का दौरा पड़ने के खतरे को कम करता है .
अंगूर का रस हृदय की धमनी व अतिसूक्ष्म
नदियों को ब्लॉक करने वाले थक्के को कम करता है .
रोज़ व्यायाम करें :
प्रतिदिन 15 मिनट भी नियमित व्यायाम करते हैं, तो दिल का दर्द या दौरा होने का खतरा एक – तिहाई तक घट जाता है । प्रतिदिन 5000 कदम रोज चलना एवं
मॉर्निंग वॉक पर जाना,एरोबिक्स या नृत्य कक्षाएं करना भी बहुत फायदेमंद होता है ।
अभी तक जितने लोगों ने इसका सेवन किया, उन्होनें अपने अनुभव में बताया कि इसके खाने से रक्तचाप सामान्य होता है । यूरिक एसिड की वृद्धि नहीं होती ।
ये कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है ।
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